Meri Aruni - 1 in Hindi Love Stories by Devika Singh books and stories PDF | मेरी अरुणी - 1

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मेरी अरुणी - 1

मृणाल पंत शिमला के ले जोसफिन कैफे में कोने की टेबल पर बैठा कॉफी एंजॉय रहा था। लंबे-छरहरे शरीरवाला वह सांवला सा लड़का पेशे से पेंटर है। उम्र यही कोई 30 के आसपास की होगी। इंस्टाग्राम पर उसके फॉलोअर्स की एक लंबी लिस्ट भी है। कैफे में लोगों का आना-जाना लगा हुआ था। तभी मृणाल की नजर अभी-अभी अंदर आए एक जोड़े पर टिक गयी। प्रेमी अपनी प्रेमिका से उम्र में छोटा, लेकिन हरकतों से अनुभवी लगा। साथ चल रही युवती हाथ उठा कर अपने ढीले हो आए हेअर स्टाइल को ठीक करने लगी कि तभी लड़के ने दोनों बांहों से उसकी कमर घेर ली। वह अपने प्रेमी की अधीरता पर हंस पड़ी और उसके कंधे को अपनी बांहों में घेर कर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। इस खेल में उसके बाल खुल कर पीठ पर बिखर गए। उसके बालों में उलझा चांदी का एक एंटीक हेअर क्लिप मृणाल की आंखों में अटक गया। उसने क्लिप में नीले रंगवाले पंखों की जलपरी को उड़ान भरते देखा। मृणाल की कल्पना भी उड़ने को हुयी कि तभी उसका मोबाइल बज उठा। स्क्रीन पर ड्राइवर का नंबर फ्लैश हुआ। वह खुद में मुस्कराया, सफर को आगे बढ़ाने का समय आ गया।

मृणाल को शिमला से 260 किलोमीटर आगे कल्पा जाना था। उसे कल्पा की एक धनी और प्रतिष्ठित महिला रमोला राजवीर शर्मा ने अपनी नातिन का पोट्रेट बनाने के लिए इन्वाइट किया है। मृणाल को तो शिमला एअरपोर्ट पर ही गाड़ी और ड्राइवर मिल गए। लेकिन उसे भूख लगी थी, इसलिए वह पेट पूजा के इरादे से कैफे आ बैठा और ऐसा खोया कि सब कुछ भूल गया।

फोन आते ही वह तुरंत कैफे से बाहर निकला। उसे शिमला से कल्पा का रास्ता बहुत रोमांचक लगा। कभी गाड़ी घुमावदार रास्तों की मदमस्त चाल से चलने लगती, तो कभी हवा के तेज बहाव में अपनी गति बढ़ाती हुयी लहराती चलती। मृणाल इस झूले में झूलता जल्दी ही सो गया। कुछ घंटे की मीठी नींद के बाद जब मृणाल की आंखें खुलीं, तो बर्फीले पहाड़ों, सेब के बगानों, ठंडी हवाओं और हरियाली से घिरे इस शहर को देख कर उसे ऐसा लगा, मानो यहां स्वर्ग सो रहा हो। ड्राइवर ने बताया कि वे कल्पा पहुंच गए।

वैसे मृणाल के लिए पहाड़ नए नहीं। उसका बचपन मसूरी की सुस्त जिंदगी, छोटी पगडंडियों और छोटी दुकानों में खेल कर बड़ा हुआ है। पर अब उसे मसूरी में ऐसा लगता जैसे पहाड़ की खामोशी भीड़ के शोर में दब कर कराह रही हो। कृत्रिम फूलों और कृत्रिम लोगों ने इस पहाड़ को चंचल कर दिया है। मृणाल इस चंचलता में पहले वाली स्थिरता तलाशता। यह अधिकतर उसके साथ होता। इस कारण वह मसूरी में अधिक देर रुक ही नहीं पाता। पर इसी शहर के एकांत में उसके मां और बाबा की स्मृतियां अपने घर की शक्ल में आज भी जीवित हैं।

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ड्राइवर के हॉर्न बजाने से मृणाल का ध्यान सामने की तरफ गया। उसने देखा गाड़ी एक बड़े से सुनहरे गेट के सामने खड़ी है। मृणाल ने गाड़ी में बैठे-बैठे पीछे पलटकर दूर तक फैले जंगल को देखा। तभी गेट खुल गया और गाड़ी एक आलीशान महलनुमा बंगले के समाने जा कर रुकी। घर का नौकर मृणाल को बैठक में ले गया। मृणाल को इंतजार करने का कह कर वह रानी मां को बुलाने चला गया। यहां के लोग रमोला राजवीर शर्मा को आदर से रानी मां कह कर ही बुलाते। नौकर के जाने के बाद मृणाल ने कमरे के चारों तरफ नजर दौड़ायी। तभी मृणाल की नजर कमरे की दाहिनी दीवार पर टंगी बड़ी सी फोटो पर ठहर गयी।

वह अपने आपसे ही बोल उठा, “खूबसूरती को कितनी बार कैनवास पर बनाने की कोशिश की है, पर ठीक से बनाने में हमेशा चूक गया। इस सुंदर चेहरे को देख कर तो ऐसा लगता है जैसे भगवान ने इसे बना कर हम जैसे चित्रकारों के ब्रश को चैलेंज किया है। इसका रंग ऐसा है, मानो दूध धुली लड़की पर केसर की फुहारें गिर गयी हों। पर इस गोल चेहरे की इन कत्थयी आंखों में झांकता हूं, तो वहां मुझे दर्द और इंतजार क्यों दिखायी दे रहा है!”

अचानक मृणाल के मुंह से निकला, “किसका है यह चेहरा?”

“दीदी मां का!”

अचानक पीछे से आयी इस आवाज से मृणाल अचकचा गया। उसने देखा, एक विराटकाय आदमी कमर पर हाथ धरे उसके पास खड़ा था।

“जी आप?”

“मैं मनोहर ठाकुर। रानी माँ का सेक्रेटरी,” इतना कह कर उस आदमी ने मृणाल की तरफ हाथ बढ़ा दिया। दोनों ने हाथ मिलाया।

इधर-उधर की थोड़ी बातचीत के बाद मृणाल ने पूछा, “दीदी मां कौन हैं?”

“रानी मां की नातिन, अरुंधती शर्मा।”

मृणाल कुछ और पूछने को हुआ कि मनोहर ने घर के नौकर को आवाज लगा दी। नौकर के आते ही वह मृणाल की तरफ घूमा और बोला, “मृणाल जी, यह रघु है। यह आपको आपके कमरे तक पहुंचा देगा। अब तक तो आपका सामान भी कमरे में पहुंच गया होगा। रानी मां आप से डिनर पर मिलेंगी ठीक 9 बजे। अब आप आराम करें, मैं निकलता हूं।”

मृणाल भी रघु के पीछे-पीछे सीढ़ियां चढ़ने लगा। उसके मन में बहुत समय से कुछ घुमड़ रहा था। उसने रघु से पूछ ही लिया, “ये रानी मां की नातिन वही हैं ना, जिनका पोट्रेट बनाने मैं आया हूं...”

“जी सरकार। बड़ी अच्छी थीं बेचारी।”

“थीं मतलब?”

“क्या बताए साहब!” इतना कह कर वह रुका और फिर धीरे से फुसफुसाया, “वे गुजर चुकी हैं सरकार!”

मृणाल उछल पड़ा।

रघु फिर बोला, “उन्होंने आत्महत्या कर ली!”

“पर क्यों?”

“हम तो नौकर आदमी हैं सरकार। हमें कौन और क्यों बताएगा! पर पुलिसवालों ने अभी केस बंद नहीं किया है। कुछ लोग तो मर्डर की बात भी करते हैं।”

कमरे के पास पहुंच कर वो और धीरे से बोला, “आप भी सावधान रहना सरकार!”

“मैं किससे सावधान रहूं!”

“इस घर में दीदी मां की आत्मा भटकती है। मैंने भी कईं बार देखा है।”

“क्या बकवास कर रहे हो!”

“जवान लड़की की अकाल मौत है साहब। उसकी रूह प्यासी है। ऐसे थोड़े ही ना शांत होगी। आप मत मानो। बताना हमारा फर्ज था। बाकी जैसी आपकी इच्छा, आपका नसीब !”

कमरे में घुसकर रघु ने लाइट का स्विच दबाया, पर बल्ब नहीं जला।

फिर बोला, “साहब, फ्यूज की कुछ प्रॉब्लम होगी।मैं अभी ठीक करके आता हूं। आप तब तक अंदर बैठें।”

रघु के नीचे जाते ही मृणाल कमरे में आ गया। बालकनी का दरवाजा खुला हुआ था। पहाड़ों में अंधेरा जल्दी हो जाता है। लेकिन पूर्णिमा होने के कारण थोड़ी ही देर में कमरे के अंधेरे को चांद की दूधिया रोशनी ने ढक दिया। बिस्तर देखते ही मृणाल को थकावट का अनुभव हुआ। अगले ही पल वह बिस्तर पर औंधा गिर पड़ा। उसकी आंखें बंद होने को ही हुईं कि यकायक उसे कमरे में किसी के होने का अहसास हुआ। बिस्तर पर पड़े-पड़े ही उसने अपनी गरदन बालकनी की तरफ घुमा दी।

वहां नजर पड़ते ही कल्पा की ठंड में मृणाल का पूरा शरीर पसीने से भीग गया। मृणाल ने जिस लड़की की अकाल मृत्यु का समाचार अभी कुछ देर पहले सुना, वह उसके सामने थी। उसे लगा कि जैसे उसका शरीर सुन्न पड़ गया हो। शरीर के किसी अंग में कोई हरकत नहीं हुई, पर आंखें वहां खड़ी लड़की की आंखों से बंध गयीं।

तभी पूरा कमरा रोशनी से नहा गया। अचानक आयी बिजली के कारण मृणाल की आंखें एक पल को मुंद गयीं। और जब खुलीं, वह वहां नहीं थी। कहीं नहीं। मृणाल बिस्तर पर पड़ा कुछ देर सोचता रहा और फिर उसकी आंख लग गयी।

नौ बजने के कुछ देर पहले मृणाल की आंख खुली। जल्दी-जल्दी तैयार हो कर वह नीचे पहुंचा। मनोहर उसे डाइनिंग एरिया के दरवाजे पर ही मिल गया। वह उससे कुछ पूछने को हुआ कि सामने से 70-75 वर्ष की एक आकर्षक महिला आती दिखायी पड़ी। उसके रौब से मृणाल समझ गया कि वही रमोला राजवीर शर्मा हैं। मृणाल के अभिवादन के उत्तर में उन्होंने हल्का सा सिर हिलाया और बैठने का इशारा किया।

“वेलकम टू हेल माई डियर! पर यहां परियां रहती हैं!” यह बात मृणाल के सामने बैठी एक औरत ने हंसते हुए कही। मृणाल ने सामने बैठी उस औरत को गौर से देखा। उसका चेहरा जाना-पहचाना सा लगा। उसकी उम्र 45-50 के बीच की रही होगी। उसका नाक-नक्श तो रानी मां से मेल खा रहा था, पर रंग कुछ दबा हुआ लगा। शायद इसी दबे रंग को उभारने के प्रयास में मेकअप की इतनी मोटी परत चढ़ायी गयी है।

“ये छोटी मां हैं!” मनोहर ने परिचय दिया।

इस बात पर वह औरत गुस्से में लाल हो गयी। बोली, “मैं कोई मां-वां नहीं हूं। ऐसे इंट्रोडक्शन तुम अपनी रानी मां और दीदी मां के लिए रखो!”

फिर उसने मृणाल की तरफ मुंह घुमाया और उसकी तरफ हाथ बढ़ा कर बोली, “कॉल मी स्वर्णा! वैसे भी तुम्हारी उम्र के तो मेरे ढेरों फ्रेंड्स हैं!”

मृणाल ने मुस्कराते हुए उसके बढ़े हुए हाथों को थाम लिया।

तभी रानी मां ने गंभीर आवाज में कहा, “मृणाल ये हैं रवि सक्सेना, स्वर्णा के हसबैंड...”

इस बार अपनी मां की बात को काटते हुए स्वर्णा ने कहा, “एक्स हसबैंड। रानी मां बूढ़ी हो रही हैं! वे यह बताना भूल गयीं कि कई साल पहले हम अलग हो चुके हैं!”

“हां-हां!” रानी मां ठहराव के साथ बोलीं।

“हेलो मिस्टर मृणाल!” रवि सक्सेना ने मां-बेटी के इस शीत युद्ध से मृणाल की रक्षा की। मृणाल ने भी मुस्करा कर उनके अभिवादन का उत्तर दिया। उनके रूप-रंग पर ध्यान दें, तो स्वर्णा के साथ उनकी जोड़ी बेमेल ही लगेगी।

अचानक पीछे से एक मीठी आवाज आयी और मृणाल को ऐसा लगा जैसे दूर किसी मंदिर में घंटियां बज रही हों। “सॉरी नानी माँ! आज हैंडीक्राफ्ट का कन्साइनमेंट पेरिस भेजना था। इसलिए देर हो गयी।”

सभी के साथ मृणाल की आंखें भी उस ओर घूमीं। उसके बाद किस-किस ने क्या-क्या कहा, मृणाल ने कुछ नहीं सुना। उस लड़की पर नजर पड़ते ही मृणाल हैरान रह गया। उस फोटोवाली लड़की को सामने देख कर उसके मन में डर और खुशी के मिलेजुले भाव आए। आखिर यह लड़की है या भूत। पर जो भी है, बहुत सुंदर है।

“ये है मेरी नातिन अरुंधती,” रानी मां जरूर कुछ और कहतीं, लेकिन उसी समय मनोहर ने उन्हें लैंडलाइन पर आए फोन के बारे में बताया। उन्होंने अरुंधती को मृणाल से बात करने के लिए कहा और खुद फोन सुनने चली गयीं।

अरुंधती उसके पासवाली कुर्सी पर बैठ गयी। मृणाल अभी भी उसे घूर रहा था।

वह धीरे से बोली, “हाय! मैं अरुंधती!”

“आप जिंदा हैं!”

वह मृणाल की इस बात से पहले तो चौंकी फिर कुछ सोच कर बोली, “नहीं!”

“मतलब?”

“इस कमरे में मौजूद सभी लोग मृत हैं और...”

“और क्या?” मृणाल ने कांपती आवाज से पूछा।

“और आज हमारी डिनर पार्टी है। तभी तो आपको बुलाया है।”

“क्या मतलब?”

“अभी भी नहीं समझे! आप ही तो हमारे मेन कोर्स हैं!”

एक पल को तो मृणाल को लगा कि वह सच बोल रही है। फिर उसकी आंखों में खेलती हंसी को देख कर सारा माजरा समझने में उसे देर नहीं लगी।

बोला, “आप उड़ा लीजिए मेरा मजाक। पर आज जो मेरे साथ हुआ है ना, उससे तो अच्छा-खासा आदमी पागल हो जाएगा। मैं तो फिर भी नॉर्मल हूँ। कुछ देर पहले जिस लड़की को मृत बताया गया, वह बालकनी में टंगी मुझे डराने आ गयी। मैं थोड़ा सामान्य हुआ कि पता चला, मैडम तो जिंदा हैं!”

इस बात पर अरुंधती हंस पड़ी। बोली, “मुझे आपके आने का पता नहीं था। उस बालकनी में सीढ़ियां हैं। मैं कभी-कभी देर हो जाने पर उनका इस्तेमाल करती हूं। सॉरी। मेरा इरादा आपको डराने का बिलकुल नहीं था।”

“इट्स ओके!” मृणाल फुसफुसाया।

“अरे स्टार्टर कहां है!” रानी मां ने फोन रखते ही कहा।

स्वर्णा ने मुंह बना कर जवाब दिया, “जहां घर की बड़ी मालकिन काम में व्यस्त थीं, वहीं छोटी मालकिन फ्लर्ट करने में बिजी थीं। हमारी कौन सुनता है!”

अरुंधती का मुंह सफेद पड़ गया। इस बात से स्वर्णा और अरुंधती के बीच का मनमुटाव भी मृणाल के सामने आ गया। पर रानी मां ने कुछ नहीं कहा। नौकरों ने स्टार्टर सर्व करना शुरू कर दिए।

“आप रियलिस्टिक आर्ट बनाते हैं?” रवि ने वहां छायी चुप्पी को तोड़ा।

“जी!”

रानी मां ने तुरंत कहा, “एक समान चेहरा और कद-काठी होते हुए भी जुड़वां बच्चों में कुछ असमानता होती है। चेहरे की यह असमानता क्या आप अपनी पेंटिंग में उतार लेंगे?”

“जी बिलकुल!”

“अगर वह चेहरा सामने ना हो फिर भी!”

मृणाल चौंका, “मैं कुछ समझा नहीं!”

रानी मां ने एक लंबी सांस ली और बोलीं, “आपको अरुंधती और उसकी जुड़वां बहन अरुणिमा की पोट्रेट बनानी है।”

“दोनों की पोट्रेट अलग-अलग बनानी है या एक साथ!”

“एक साथ!”

“ठीक है। हो जाएगा रानी मां।”

“पर मृणाल, एक परेशानी है!” इस बार रानी मां की आवाज धीमी थी।

“कैसी परेशानी?”

“अरुणिमा अब इस दुनिया में नहीं है। उसने दो महीने पहले आत्महत्या कर ली।”

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